पराली प्रबंधन ठीक होगा तो रुक सकता है वायु प्रदूषण

सामूहिक प्रयास से होगा पराली प्रबंधन, सबको निभानी होगी अपनी भूमिका

रविन्द्र विक्रम सिंह

सर्दियां शुरू होने से पहले स्मॉग रूपी वायु प्रदूषण लोगों के गले में संक्रमण, आंखो में जलन और खांसने पर मजबूर करता है। साल दर साल दिल्ली में हवा की गुणवत्ता बदतर होती जा रही है। दिल्ली को गैस चेंबर बनाने वाले जिम्मेदार लोग कौन है, मामले को संज्ञान में लेते हुए सुप्रीम कोर्ट में प्रदूषण पर सख्त टिप्पणी की। पराली जलाने पर प्रतिबंध, पटाखों पर पांबदी, कक्षा दस और 12 को छोड़ कर स्कूल बंद करने का निर्णय, ऑड ईवन आदि तरीके प्रदूषण नियंत्रण के लिए अधिक कारगर साबित नहीं हुए।

लंबे समय से पंजाब और हरियाणा में पराली जलाना प्रदूषण की प्रमुख वजह रहा है, तमाम प्रतिबंध के बावजूद किसानों द्वारा हर साल पराली जलाई जा रही है, जिसका धुंआ दिल्ली एनसीआर को अपनी जद में ले लेता है। कुछ दिन पहले पराली जलने की सेटेलाइट इमेज जारी की गई, जिससे स्थिति साफ हो गई कि पंजाब में कई स्थानों पर अब भी किसान फसल के बाद बची झाड़ को जलाते हैं जो दिल्ली एनसीआर को गैस चेंबर बना रहा है। पराली जलाने के कई विकल्प हो सकते हैं, इसपर समय समय पर चर्चा भी कई गई।

Stubble Management, Air Pollution, Indian Farmers, NGT, Nitin Gadkari

कुछ स्टार्टअप पराली के निस्तारण के लिए काम भी कर रहे हैं, लेकिन किसानों तक अभी उनकी पहुंच नहीं हो पाई। इसी तर्ज पर एक उपाय यह है कि पराली के निस्तारण का उपाय स्थानीय स्तर पर ही खोजा जाना चाहिए, किसान संबंधित जिला पंचायत अधिकारी या प्रधान के पास पराली को इकठ्ठा करवा सकते हैं, या फिर गांव के प्रधान इसकी पहल कर सकते हैं, प्रधान इसके एवज में किसानों को कुछ शुल्क भी दे सकते हैं। जिससे किसान मजबूरी में पराली नहीं जलाएगें, अब एकत्रित हुए पराली के ढेर को ब्रिकेट्स बना कर उसे कोयल के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।

स्थानीय ब्रिकेट्स यूनिट में किसान अपने खेत की पराली को इकट्टा कर सकते हैं, मालूम हो कि चारकोल ब्रिकेट्स से जहरीला धुंआ नहीं निकलता है लेकिन इससे वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन जरूर होता है। पराली जलाने के इस विकल्प को यदि सुनियोजित तरीके से अपनाया जाएं तो यह उर्जा के बेहतर संसाधन के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त सुरक्षित या पर्यावरण मैत्री ईंधन संसाधनों के प्रयोग को बढ़ाना होगा, हालांकि इस संदर्भ में एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) की भूमिका काफी सराहनीय है।

एनजीटी के आदेशानुसार ही दिल्ली में दस साल के अधिक के डीजल वाहनों पर रोक लगाई जा सकी। केन्द्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी सुरक्षित जैविक ईंधनों के प्रयोग पर लगातार जोर दे रहे हैं, ऐसा अनुमान है कि 2030 तक ईंधन के अन्य विकल्प जैसे ईथेनॉल, इलेक्ट्रिक व्हीकल और सोलर ईंधन को अधिक से अधिक प्रयोग किया जा सकेगा, जिससे वातावरण में जहरीली जैसे कम मिल पाएगीं। मेट्रो सिटी में इसके लिए तेजी से ईवी स्टेशन तैयार किए जा रहे हैं, जहां इलेक्ट्रिक वाहनों को आसानी से रिचार्ज किया जा सकता है। आटो मोबाइल कंपनियां भी मानकों का पालन करें तो वातावरण को आने वाली पीढ़ी के लिए बेहतरत् तरीके से संरक्षित किया जा सकता है।

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इसके साथ ही कुछ प्रयास एक जागरूक और जिम्मेदार नागरिक होने के नाते आम लोगों को भी करने होंग, जैसे नैतिकता के आधार पर रेड लाइट होने पर गाड़ी का इंजन बंद कर दें, सीएनजी ईधन का प्रयोग, गाड़ी की सही समय पर सर्विसिंग और व्हीकल पूल करना आदि ऐसे उपाय है जिसे सरकार के हस्तक्षेप बिना अपनाएं जा सकते हैं, आखिरकार पर्यावरण को सुरक्षित रखने का कुछ फर्ज हमारा भी है।

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